किसने किस पार्टी को कितना चंदा दिया, होगा सार्वजानिक।

सुप्रीम कोर्ट ने लोकसभा चुनाव के ऐलान से पहले इलेक्टोरल बॉन्ड्स को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। इस फैसले में कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड स्कीम को अवैध घोषित करते हुए उस पर प्रतिबंध लगा दिया है।कोर्ट ने बताया  है  इलेक्टोरल बॉन्ड सूचना के अधिकार का उल्लंघन है और वोटर्स को राजनीतिकी  पार्टियों की फंडिंग के बारे में जानने का हक है।
बॉन्ड खरीदने वालों की लिस्ट सार्वजनिक की जाएगी

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिए हैं कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वालों की लिस्ट सार्वजनिक की जाए। इससे राजनीतिकी पार्टियों  के पास पैसा कहां से आता है और कहां जाता है मतदाताओ को पता चल सके।जिससे लोगों को मताधिकार का इस्तेमाल करने में स्पष्टता मिलेगी।
इलेक्टोरल बॉन्ड का अलावा भी काले धन को रोकने के तरीके

सुप्रीम कोर्ट ने फैसले के साथ यह भी बताया कि इलेक्टोरल बॉन्ड के अलावा भी काले धन को रोकने के अन्य तरीके हैं। कोर्ट ने इस निर्णय के साथ माना कि बॉन्ड की गोपनीयता 'सूचना  के अधिकार' के खिलाफ है।
इलेक्टोरल बॉन्ड्स की  खूबियां

इलेक्टोरल बॉन्ड का आरंभ साल 2018 में हुआ था। इसे लागू करने का मुख्य मकसद था कि राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी और साफ-सुथरा धन आएगा। इस विधि में व्यक्ति, कॉरपोरेट और संस्थाएं बॉन्ड खरीदकर राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में देती थीं और राजनीतिक दल इस बॉन्ड को बैंक में भुनाकर रकम हासिल करते थे। इस व्यवस्था में डोनरों की पहचान नहीं खुलती थी और इसे टैक्स से भी छूट प्राप्त होती थी।


 

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